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रबीन्द्रनाथ टैगोर : जानिये ! नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय रबीन्द्रनाथ टैगोर के बारे में ख़ास बातें




रबीन्द्रनाथ टैगोर : रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में प्रसिद्ध और समृद्ध बंगाली परिवार मे हुआ था। रबींद्रनाथ अपने माँ-बाप की तेरह जीवित संतानों में सबसे छोटे थे।

 जब रबींद्रनाथ छोटे थे तभी उनकी माँ का देहांत हो गया उनके पिता ब्रम्‍ह समाज के वरिष्ट नेता थे. वे बहुत ही सुलझे और सामाजिक जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। रबींद्रनाथ उनका लालन-पालन नौकरों-चाकरों द्वारा ही किया गया था | 

वहां पर पत्रिकाओं का प्रकाशन, थिएटर, बंगाली और पश्चिमी संगीत की प्रस्तुति अक्सर होती रहती थी| इस प्रकार उनके घर का माहौल किसी विद्यालय से कम नहीं था।

रविंद्रनाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम एशियाई और साहित्य में नोबेल पाने वाले पहले गैर यूरोपीय भी थे। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की सबसे लोकप्रिय रचना ‘गीतांजलि’ रही जिसके लिए 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

गीतांजलि लोगों को इतनी पसंद आई कि अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रैंच, जापानी, रूसी आदि विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम का बोलबाला दुनिया के हर कोने में फैल गया और टैगोर विश्व-मंच पर स्थापित हो गए।

रवीन्द्रनाथ की कहानियों में क़ाबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं। टैगोर दुनिया के अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान हैं, इनमे भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और हमारे पड़ोसी देश बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ हैं | 

गुरुदेव के नाम से भी प्रसिद्ध रविंद्रनाथ टैगोर ने बांग्ला साहित्य और संगीत को एक नई दिशा दी। उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य और बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। रविंद्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता की अच्छाइयों को पश्चिम में और वहां की अच्छाइयों को यहाँ पर लाने में प्रभावशाली भूमिका निभाई।

रविंद्रनाथ टैगोर जब मात्र 8 साल के थे तब उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी। 16 साल की उम्र में ‘भानुसिम्हा’ उपनाम से उनकी कवितायेँ प्रकाशित भी हो गयीं। वह घोर राष्ट्रवादी थे और ब्रिटिश राज की भर्त्सना करते हुए देश की आजादी की मांग की।

13 अप्रैल 1919 जलिआंवाला बाग़ कांड के बाद रविंद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाइटहुड ‘सर’ का त्याग कर दिया। उन्होने अंतराष्ट्रीय मंच पर भारतीय साहित्य को सम्मान दिलाकर देश की शान बढाई। सबसे पहले टैगोर जी ने ही गाँधी जी को महात्मा कहकर पुकारा था। 

महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘‘रब्बी टैगोर’’ के नाम से पुकारते थे। हिब्रू भाषा में ‘‘रब्बी’’ का अर्थ होता है ‘‘मेरे गुरू’’। यहूदी धर्म गुरू को भी ‘‘रब्बी’’ कहा जाता है। रविंद्रनाथ टैगोर का ऐसा व्यक्तित्व जिसे शब्दो मे बयाँ करना असंभव हैं. टैगोर इतनी महान हस्ती है की उनके बारे मे बताने के लिए आपके पास शब्द कम पढ़ जाएँगे | 

Image: Web

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा

उनके घर का माहौल किसी विद्यालय से कम नहीं था। रवीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे। उनके एक दूसरे भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सेवा में शामिल होने वाले पहले भारतीय थे। टैगोर एक और भाई ज्योतिन्द्रनाथ संगीतकार और नाटककार थे। टैगोर की बहन स्वर्नकुमारी देवी एक कवयित्री और उपन्यासकार थीं। पारंपरिक शिक्षा पद्धति उन्हें नहीं भाती थी इसलिए कक्षा में बैठकर पढना पसंद नहीं था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के साथ परिवार के जागीर पर घूमा करते थे। उनके भाई हेमेंद्रनाथ उन्हें पढाया करते थे। इस अध्ययन में तैराकी, कसरत, जुडो और कुश्ती भी शामिल थे। इसके अलावा उन्होंने ड्राइंग, शरीर रचना, इतिहास, भूगोल, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी भी सीखा।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्राथमिक शिक्षा सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। उनके पिता देवेन्द्रनाथ चाहते थे कि रवीन्द्रनाथ बडे होकर बैरिस्टर बनें। इसलिए उन्होंने रवीन्द्रनाथ को क़ानून की पढ़ाई के लिए 1878 में लंदन भेजा लेकिन रवीन्द्रनाथ का मन तो साहित्य में था फिर मन वहाँ कैसे लगता! आपने कुछ समय तक लंदन के कॉलेज विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री लिए वापस आ गए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।

रवीन्द्रनाथ टैगोर का साहित्य सफ़र 

बचपन से ही रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। टैगोर ने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूँकने वाले युगदृष्टा टैगोर के सृजन संसार में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं।


रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1881 में ‘वाल्मिकी प्रतिभा’ ये पहला संगीत नाटक लिखा। यैसे ही ‘साधना’‘भारती’ और ‘वंगदर्शन’ इन मासिको का संपादन किया।

रविंद्रनाथ टैगोर वर्ष 1901 में शान्तिनिकेतन चले गए। वह यहाँ एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे। यहाँ पर उन्होंने एक स्कूल, पुस्तकालय और पूजा स्थल का निर्माण किया। ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना सिर्फ पांच छात्रों को लेकर की थी। इन पांच लोगों में उनका अपना पुत्र भी शामिल था।

1921 में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने वाले विश्वभारती में इस समय लगभग छह हजार छात्र पढ़ते हैं। इसी के ईर्द-गिर्द शांतिनिकेतन बसा था। जहाँ उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन साहित्य, संगीत और कला की शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में एक आदर्श विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना जाता है। इंदिरा गाँधी जैसी कई प्रतिभाओं ने शान्तिनिकेतन से शिक्षा प्राप्त की है।

रविंद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के अंतिम 4 साल बीमारी में बिताये। वर्ष 1937 के अंत में वो अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे। लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ऐसा ही हुआ। इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कवितायें लिखते। 

इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं। लम्बी बीमारी के बाद 7 अगस्त 1941 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। परन्तु साहित्यिक दुनिया में रबीन्द्रनाथ टैगोर सूर्य की भाँति सदैव प्रकाशमान हैं।

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