Nana Saheb Peshwa II: 1857 के संग्राम में नाना साहेब का क्या योगदान था ?
Nana Saheb Peshwa II: 1857 के संग्राम में अपने कई क्रन्तिकारीयों का बारे में सुना होगा | जैसे के रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे और इनमें एक नाम और भी था, जिनका नाम है नाना साहेब | नाना साहेब शिवाजी के शासन काल में सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे। उन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी संबोधित किया था। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हो गई तब उन्होंने पेशवा को मराठा साम्राज्य का शासक बना दिया ।
छत्रपति शाहू का अपना कोई वारिस नहीं था। इसलिए उन्होंने बहादुर पेशवा में से एक को अपना बारिश नियुक्त किया और साम्राज उन्हें सौंप दिया । कहा जाता है कि नानासाहेब के दो भाई थे। रघुनाथराव और जनार्दन रघुनाथराव ने अंग्रेजों से हाथ मिलाकर मराठों के साथ धोखा किया, जबकि जनार्दन की अल्पायु में ही मृत्यु हो गई।
मराठा साम्राज्य में नाना साहेब का अहम योगदान है। नानासाहेब ने पुणे शहर के लिए विकास के लिए काफी प्रयास किए। उन्होंने शासनकाल के दौरान ही पुणे को एक गांव से शहर तक में बदल दिया था। उन्होंने शहर में नए इलाकों मंदिर, पुल और काफी काम करवा कर शहर को एक नया रूप दिया। उन्हें कटराज शहर में एक जलाशय की भी स्थापना की थी। नानासाहेब एक बहुत ही महान शासक और एक बहुमुखी व्यक्तितव के धनी थे।
कहा जाता है कि 1741 में उन्हें चाचा चिमणजी जी का निधन हो गया जिसके चलते उन्हें उत्तरी जिलों से लौटना पड़ा था। उन्हें पुणे के नागरिक के प्रशासन में सुधार करने के लिए 1 साल बिताया | 1741-1745 तक की अवधि को अमन और शांति का समय माना जाता है। इस दौरान खेती-बाड़ी को उन्होंने काफी प्रोत्साहित किया और ग्रामीणों को सुरक्षा दी तांकि वो खेती-बाड़ी को अच्छे से कर सकें और उन्हें काफी सुधार भी हुए।
जब अंग्रेज 1 जुलाई 1857 को कानपुर चले गए, तभी नानासाहेब ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और की पेशवा की उपाधि धारण की। कहा जाता है कि फतेहपुर तथा आंग स्थान में नानासाहेब के दल और अंग्रेजों के बीच काफी भयंकर युद्ध भी हुए। इसमें कभी क्रांतिकारी जीते तो कभी अंग्रेज। इसके बाद नासाहेब अंग्रेजों को बढ़ता देख गंगा नदी पार करके लखनऊ की और चल पड़े | इसके बाद अंग्रेजों कानपूर और लखनऊ के बीच के रास्ते को अपने कब्जे में लिया, तो नानासाहेब रुहेलखंड की ओर चले गए | रुहेलखंड पहुंचते ही उन्होंने खान बहादुर को अपना सहयोग दिया।
अंग्रेजों को यह बात समझ आ गई थी कि जब तक नानाजी पकड़े नहीं चाहते तब तक उन्हें दबाया नहीं जा सकता। जब बरेली में क्रांतिकारियों की हार हुई तब नानासाहेब मेरा महाराणा प्रताप की भांति अनेक कष्ट सहे, उन्होंने अंग्रेजों और उनके मित्रों को आत्मसमर्पण नहीं किया। इसके चलते ब्रिटिश सरकार ने नानासाहेब को पकड़वाने के लिए बड़े-बड़े इनाम घोषित कर दिए पर अंग्रेज सरकार में भी सफल नहीं हो पाए ।
लॉर्ड डलहौज़ी ने पेशवा बाजीराव दूसरे की मृत्यु के बाद नानासाहेब को 800000 की पेंशन से वंचित कर दिया था। उन्हें अंग्रेजी राज का दुश्मन बना दिया। नानासाहेब ने इस अन्याय की आवाज देशभक्त अजीम उल्लाह खां के माध्यम से इंग्लैंड सरकार तक पहुंचाई। लेकिन यह सारे भी प्रयास में सफल नहीं हुए। अब दोनों ही अंग्रेजी राज के विरोधी हो गए थे। भारत में अंग्रेजी राज को खत्म करने और जड़ से उखाड़ने के प्रयास में लग गए, जिसमें कई क्रांतिकारियों ने भी उनका साथ दिया।
कहा जाता है कि 1857 के संग्राम की योजना बनाने वाले, समाज को एक साथ लेकर आने वाले और भारतीय सेना में स्वाधीनता संग्राम में योगदान देने लिए तैयार करने वाले नानासाहेब ही थे। नानासाहेब प्रमुख राष्ट्रभक्ति से एक थे | असीम कौशल तथा वाणी इतनी मधुरता थी कि अंग्रेज उनकी योजना को गुप्तचर से पता करते थे |
नाना साहेब का त्याग, वीरता और उनकी सैनिक योग्यता उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान शासक बना देती है। अंग्रेजों के दुश्मन कुछ विद्वानों के अनुसार महान क्रांतिकारी नाना साहेब के जीवन के नेपाल में ना होकर गुजरात के सिहोर में हुआ था।
इसके बारे में अलग अलग मतभेद हैं | कुछ का कहना है कि नानासाहेब का जन्म 16 मई 1825 में हुआ, कुछ लोगों यह मत है कि नाना साहेब का जनम 1824 में हुआ था। उनके के पिता का नाम माधवराव नारायण भट्ट ओर माँ का नाम गंगाबाई था।
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