Mirabai Chanu: मीराबाई चानू...जो कभी जंगल में लकड़ियों का गट्ठर उठाती थी, अब भारत के लिए जीता गोल्ड मेडल
Saikhom Mirabai Chanu: साइखोम मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ गेम्स में 49 किलोग्राम भार वर्ग में वजन उठाकर भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत लिया है. मीराबाई ने स्नैच राउंड में सबसे ज्यादा 88 किलो का वजन और क्लीन एंड जर्क राउंड में 113 किलो का वजन और कुल मिलाकर 201 किलो का वजन उठाया।
2017 में मीराबाई चानू ने 48 किलोग्राम भार वर्ग मुकाबले में 194 किलोग्राम वजन उठाकर वर्ल्ड वेटलिफ़्टिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था | चानू पिछले 22 साल में ऐसा करने वाली मीराबाई पहली भारतीय महिला बन गई थीं |
कहा जाता है कि मीराबाई ने 48 किलो का वज़न बनाए रखने के लिए उस दिन खाना तक नहीं खाया था | चैंपियनशिप की तैयारी के लिए मीराबाई पिछले साल अपनी सगी बहन की शादी तक में नहीं गई थीं |
साइखोम मीराबाई चानू 11 साल की उम्र में अंडर-15 चैंपियन बन गई थीं और 17 साल में जूनियर चैंपियन रही. जिस कुंजुरानी को देखकर मीरा के मन में चैंपियन बनने का सपना जागा था, अपनी उसी आइडल के 12 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को मीराबाई ने 2016 में 192 किलोग्राम वज़न उठाकर तोड़ दिया |
मीराबाई चानू का 2016 रियो ओलंपिक में बेहद ख़राब प्रदर्शन रहा, जो भार मीरा रोज़ाना प्रैक्टिस में आसानी से उठा लिया करतीं, उस दिन ओलंपिक में वैसा नही कर पाई | मीराबाई की भारतीय प्रशंसकों ने आलोचना शुरू कर दी नौबत यहाँ तक आई कि 2016 के बाद वो डिप्रेशन में चली गईं और उन्हें हर हफ्ते मनोवैज्ञानिक के सेशन लिए |
मीराबाई चानू की ज़बरदस्त वापसी
इसके बाद एक बार तो मीरा ने खेल को अलविदा कहने का मन बना लिया था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज़बरदस्त वापसी की और शानदार प्रदर्शन किया |
मीराबाई ने 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था और टोकियो 2020 में उन्हें सिल्वर मिला।
मीराबाई चानू का जीवन और परिवार
साइखोम मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को भारत के राज्य मणिपुर की राजधानी इम्फाल में हुआ था। इनकी माता का नाम साइकोहं ऊँगबी तोम्बी लीमा है जो पेशे से एक दुकानदार हैं और इनके पिता का नाम साइकोहं कृति मैतेई है जो PWD डिपार्टमेंट में नौकरी करते हैं।
मीरबाई मणिपुर के एक छोटे से गाँव में पली बढ़ी और बचपन से ही काफ़ी हुनरमंद थीं | कहा जाता कि वह बचपन में अपने भाई-बहनों के साथ लकड़ी बिनती थी। जंगल में जाकर वह लड़की चुनने के बाद उनका गठ्ठर बनाकर घर लाती थीं। जिसके कारण मीराबाई को बचपन से ही वजन उठाने की आदत हो गई।
मीरा के भाई सैखोम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक दिन मैं लकड़ी का गठ्ठर नहीं उठा पाया, लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा किया। फिर दो किमी चलकर घर भी आ गई। उस समय मीराबाई चानू सिर्फ 12 साल की थी।
वेटलिफ़्टर बनने शुरुआत
मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी स्टार थीं और एथेंस ओलंपिक में खेलने गई थीं. उनसे प्रभावित होकर मीरा मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने मन बना लिया था
उनकी की ज़िद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी. मीरा ने 2007 में जब प्रैक्टिस शुरु की तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था तो वो बाँस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं |
मीरा के गाँव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं. इसके लिए डाइट में रोज़ाना दूध और चिकन चाहिए था, लेकिन एक आम परिवार की मीरा के लिए वो मुमकिन न था. उन्होंने इसे भी आड़े नहीं आने दिया और खुद इसका इंतजाम किया |
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